जीवन के कुछ अलौकिक गूढ़ रहस्य हैं, जिसे समझना अत्यंत मुश्किल है।

पहले भटूरे को फुलाने के लिये उसमें ENO डालिये।
फिर भटूरे से फूले पेट को पिचकाने के लिये ENO पीजिये।

“जीवन के कुछ अलौकिक गूढ़ रहस्य हैं, जिसे समझना अत्यंत मुश्किल है।”

पांचवीं तक स्लेट की बत्ती को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी।
लेकिन,
इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें …!!!

पढ़ाई के तनाव को हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा दांतों से चबाकर मिटाया था …!!!

पुस्तक के बीच पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे… ऐसा हमारा दृढ विश्वास था।

कपड़े के थैले में किताब-कॉपियां, जमाने का विन्यास हमारा रचनात्मक कौशल था …!!!

हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते थे तब कॉपी किताबों पर जिल्द चढ़ाना हम अपने जीवन का वार्षिक उत्सव मानते थे, और मनाते थे …!!!

माता – पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी, न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझ थी …

सालों साल बीत जाते पर भी माता – पिता के कदम हमारे स्कूल में नहीं पड़ते थे …!!!

एक दोस्त को साईकिल के बीच वाले डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठाकर हमने कितने रास्ते नापें हैं, यह अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं …!!!

स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो हमें कभी परेशान नहीं करता था दरअसल हम जानते ही नही थे कि, ईगो होता क्या है ???

पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज सामान्य प्रक्रिया थी।
पीटने वाला और पिटने वाला दोनो खुश हुआ करते थे। पिटने वाला इसलिए खुश कि हम कम पिटें और पीटने वाला इसलिए खुश होता था कि चलो हाथ साफ़ हुआ …!!!

हम अपने माता – पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं, क्योंकि हमें “आई लव यू” कहना आता ही नहीं था …!!!

आज हम गिरते – सम्भलते, संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं। कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं …!!!

हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन सच तो यह है कि हमे हकीकतों ने पाला है, हम सच की दुनियां में थे। वास्तविकता से बहुत ही नजदीक का संबंध रहा है…!!!

कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी आया ही नहीं … इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे …!!!

आप चाहें तो अपनी भी धुँधली स्मृतियाँ नीचे कॉमेंट कर के जोड़ सकते हैं।
आपकी अपनी अनुभूतियों अनुभवों का प्रतीक्षा रहेगा।

Bharat Alpha

A simple responsible citizen...

This Post Has 3 Comments

  1. Govind Mohan Jha

    बचपन की यादें ताजा हुई ।
    धन्यवाद ! हमारी यादों को बुलाने के लिए।

  2. Sadhana Jha

    Nice and real

  3. Radha charan Jha

    उस समय का यह एक परिपाटी था जिसमें हमलोग समाहित थे जिसमें आनन्द का निराभाव और दु:ख लेश मात्र था ।

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